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الموضوع: عاشق من فلسطين.. مترجمة إلى الروسية

  1. #1
    عـضــو الصورة الرمزية عماد رائف
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    افتراضي عاشق من فلسطين.. مترجمة إلى الروسية

    ترجمة الأستاذة سفيتلانا زولوتسيفا لرائعة الشاعر العربي الكبير الراحل محمود درويش "عاشق من فلسطين"

    Махмуд Дервиш
    ВЛЮБЛЕННЫЙ ИЗ ПАЛЕСТИНЫ

    О любимая, в сердце
    Вонзились твои глаза.
    Я без боли о них вспоминать не могу.
    В них и гнев, и тоска, и гроза Отразились.
    Но я эту боль берегу.
    Эту тысячезвездную рану,
    Ибо тернии сердцу сегодня нужней,
    Чем виноградные кущи.
    Эта боль — продолженье любви моей,
    Мост от нынешних дней к грядущим.
    Как забуду глаза твои — светлые дни
    Детских лет, когда вместе росли мы!
    И тогда уже мною любимы
    Глаз твоих были огни.
    Первой песней моей им суждено было стать.
    Я хочу ее спеть опять.
    Но жестоко и грубо
    Обжигает изгнанья мороз мои губы.
    Даже птицы, и те
    Улетели от нами покинутых стен.
    Зеркала раскололись, по свободе печальную тризну
    Справляя. И, песен родных подбирая осколки,
    Мы ценить научились отчизну.
    Наших песен читаем слова
    На разбитых, пробитых свинцом гитарах,
    И мелодии наши творим
    На рыдающих кровлях.
    О любимая, наша любовь жива.
    Пусть мой голос надломлен,
    Но ты его слышишь,
    Стал он глуше — не тише.
    А я вижу тебя
    Бегущей по травам колючим,
    Юной пастушкой домашнего стада
    Рядом с домом, который теперь
    Превратился в руины.
    Пеплом стала заветная дверь.
    И я вижу тебя сегодняшней,
    В очередях у иссохших колодцев,
    Судомойкой в ночных кафе,
    На лохмотьях спящей в палатке.
    И я вижу тебя у сиротских костров,
    Вспоминающей сладкий
    Дым родных очагов.
    Но куда бы нога твоя ни ступала,
    Я уверен, собою останешься ты
    И в изгнанье и в горе,
    Как собою останется солнце,
    Как собою останется море,
    Как собой остается прекрасная наша земля.
    Я клянусь
    На платке, что в прощальный час
    Мне подарен тобою,
    И клянусь я ресниц твоих чернотою,
    Я клянусь,
    Что навек Палестина
    Останется нашей судьбою.
    Палестинкой останешься ты
    Под набатной луною.
    Мы пронзим коченеющий воздух
    Новыми песнями,
    Бросим новые зерна в иссохшую почву,
    Кровью своей оросив
    Плоть и душу ограбленных нив,
    Пусть пройдут еще долгие годы —
    Будут щедрыми всходы.
    Палестинское имя твое.
    Палестинский взор у тебя.
    Палестинский узор одежды.
    Палестина — твоя надежда.
    Палестина — твой голос.
    Палестина — твоя женская гордость.
    Палестинкою ты живешь.
    Палестинкою ты умрешь.
    О любимая, ты — суть и смысл моих книг
    И огонь моих песен.
    Ты заполнила жизни моей каждый миг.
    Без тебя этот мир и бесцветен и пресен.
    Ты единственный мной сотворенный кумир,
    Ибо ты и отчизна в душе моей неразделимы,
    Как единое целое сердцем любимы.
    Перевод С. Золотцева

    كلما ازدادت الفكرة هشاشة.. كلما ازداد إرهاب أصحابها دفاعاً عنها



  2. #2
    عـضــو الصورة الرمزية عماد رائف
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    افتراضي رد: عاشق من فلسطين.. مترجمة إلى الروسية

    عاشق من فلسطين
    محمود درويش
    عيونِك شوكةٌ في القلب
    توجعني... وأعبدُها
    وأحميها من الريحِ
    وأُغمدها وراء الليل والأوجاع... أغمدها
    فيشعل جُرحُها ضوءَ المصابيحِ
    ويجعل حاضري غدُها
    أعزَّ عليَّ من روحي
    وأنسى، بعد حينٍ، في لقاء العين بالعينِ
    بأنّا مرة كنّا، وراءَ الباب، إثنينِ!
    كلامُكِ... كان أغنيهْ
    وكنت أُحاول الإنشاد
    ولكنَّ الشقاء أحاط بالشفة الربيعيَّة
    كلامك، كالسنونو، طار من بيتي
    فهاجر باب منزلنا، وعتبتنا الخريفيَّه
    وراءك، حيث شاء الشوقُ...
    وانكسرت مرايانا
    فصار الحزن ألفينِ
    ولملمنا شظايا الصوت...
    لم نتقن سوى مرثيَّة الوطنِ!
    سنزرعها معاً في صدر جيتارِ
    وفق سطوح نكبتنا، سنعرفها
    لأقمارٍ مشوَّهةٍٍ...وأحجارِ
    ولكنّي نسيتُ... نسيتُ... يا مجهولةَ الصوتِ:
    رحيلك أصدأ الجيتار... أم صمتي؟!


    2
    رأيتُك أمسِ في الميناءْ
    مسافرة بلا أهل... بلا زادِ
    ركضتُ إليكِ كالأيتامُ،
    أسأل حكمة الأجداد:
    لماذا تُسحبُ البيَّارة الخضراءْ
    إلى سجن، إلى منفى، إلى ميناءْ
    وتبقى، رغم رحلتها
    ورغم روائح الأملاح والأشواق،
    تبقى دائماً خضراء؟
    وأكتب في مفكرتي:
    أُحبُّ البرتقال. وأكرهُ الميناء
    وأَردف في مفكرتي:
    على الميناء
    وقفتُ. وكانت الدنيا عيونَ شتاءْ
    وقشر البرتقال لنا. وخلفي كانت الصحراء!

    3
    رأيتُكِ في جبال الشوك
    راعيةً بلا أغنام
    مطارَدةً، وفي الأطلال...
    وكنت حديقتي، وأنا غريب الدّار
    أدقُّ الباب يا قلبي
    على قلبي...
    يقرم الباب والشبّاك والإسمنت والأحجار!

    3
    رأيتكِ في خوابي الماء والقمحِ
    محطَّمةً. رأيتك في مقاهي الليل خادمةً
    رأيتك في شعاع الدمع والجرحِ.
    وأنتِ الرئة الأخرى بصدري...
    أنتِ أنتِ الصوتُ في شفتي...
    وأنتِ الماء، أنتِ النار!

    4
    رأيتكِ عند باب الكهف... عند النار
    مُعَلَّقَةً على حبل الغسيل ثيابَ أيتامك
    رأيتك في المواقد... في الشوارع...
    في الزرائب... في دمِ الشمسِ
    رأيتك في أغاني اليُتم والبؤسِ!
    رأيتك ملء ملح البحر والرملِ
    وكنتِ جميلة كالأرض... كالأطفال... كالفلِّ
    وأُقسم:
    من رموش العين سوف أُخيط منديلا
    وأنقش فوقه شعراً لعينيكِ
    وإسماً حين أسقيه فؤاداً ذاب ترتيلا...
    يمدُّ عرائش الأيكِ...
    سأكتب جملة أغلى من الشُهَدَاء والقُبَلِ:
    "فلسطينيةً كانتِ. ولم تزلِ!"
    فتحتُ الباب والشباك في ليل الأعاصيرِ
    على قمرٍ تصلَّب في ليالينا
    وقلتُ لليلتي: دوري!
    وراء الليل والسورِ...
    فلي وعد مع الكلمات والنورِ.
    وأنتِ حديقتي العذراءُ...
    ما دامت أغانينا
    سيوفاً حين نشرعها
    وأنتِ وفيَّة كالقمح...
    ما دامت أغانينا
    سماداً حين نزرعها
    وأنت كنخلة في البال،
    ما انكسرتْ لعاصفةٍ وحطّابِ
    وما جزَّت ضفائرَها
    وحوشُ البيد والغابِ...
    ولكني أنا المنفيُّ خلف السور والبابِ
    خُذينيَ تحت عينيكِ
    خذيني، أينما كنتِ
    خذيني، كيفما كنتِ
    أردِّ إليَّ لون الوجه والبدنِ
    وضوء القلب والعينِ
    وملح الخبز واللحنِ
    وطعم الأرض والوطنِ!
    خُذيني تحت عينيكِ
    خذيني لوحة زيتيَّةً في كوخ حسراتِ
    خذيني آيةً من سفر مأساتي
    خذيني لعبة... حجراً من البيت
    ليذكر جيلُنا الآتي
    مساربه إلى البيتِ!

    5
    فلسطينيةَ العينين والوشمِ
    فلسطينية الإسمِ
    فلسطينية الأحلام والهمِّ
    فلسطينية المنديل والقدمَين والجسمِ
    فلسطينية الكلمات والصمتِ
    فلسطينية الصوتِ
    فلسطينية الميلاد والموتِ
    حملتُك في دفاتريَ القديمةِ
    نار أشعاري
    حملتُك زادَ أسفاري
    وباسمك، صحتُ في الوديانْ:
    خيولُ الروم!... أعرفها
    وإن يتبدَّل الميدان!
    خُذُوا حَذَراً...
    من البرق الذي صكَّته أُغنيتي على الصوَّانْ
    أنا زينُ الشباب، وفارس الفرسانْ
    أنا. ومحطِّم الأوثانْ.
    حدود الشام أزرعها
    قصائد تطلق العقبان!
    وباسمك، صحت بالأعداءْ:
    كلي لحمي إذا نمت ياديدانْ
    فبيض النمل لا يلد النسور
    وبيضةُُ الأفعى...
    يخبىء قشرُها ثعبانْ!
    خيول الروم... أعرفها
    وأعرف قبلها أني
    أنا زينُ الشباب، وفارس الفرسان!

    كلما ازدادت الفكرة هشاشة.. كلما ازداد إرهاب أصحابها دفاعاً عنها



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